एक शरणार्थी शिविर में एक कश्मीरी पंडित महिला। hindustantimes.com |
सेना के सेवानिवृत्त मेजर ने एक बात कही कि आज से तीस वर्ष पहले कश्मीरी पंडितो पर आतंकवादियों के हमले की शुरुवात हुई तब उस समय भारत का गृह मंत्री महबूबा मुफ़्ती का बाप था. आज महबूबा अपने घर में बंद हैं और आज का गृह मंत्री उनका "बाप" है.
कुछ लोगों का तर्क है कि इंटरनेट एक मूलभूत जरुरत है कश्मीर में इंटरनेट बंदकर दिया. पर यह भूल गए कि पता नहीं कितने लाख कश्मीरी पंडितो से उनका घर छीना। माँ बेटियों के साथ दुष्कर्म किया। जाने कितने लोगों की हत्या की. कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बन गया. कुछ को तो पति और बेटे के रक्त से सने हुए चावल को खिलाया। पर तथाकथित मानवाधिकार के शूरवीर चुप रहे.
और किसके लिए मानवता जिन्होंने ईद की नमाज के बाद पुलिस के अधिकारी मोहम्मद अयूब पंडित की पीट पीट कर हत्या केवल इस कारण से किया कि अयूब की यूनिफार्म पे उनका नाम "एम. ए. पंडित" लिखा हुआ था. और जहाँ पर भी ये कट्टरपंथी संख्याबल में हैं वहां बाकी दुसरो यही करते हैं. क्रूरता और आतंक ही इनका इतिहास है.
भारत सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि कश्मीरी पंडितों को उनका घर उनकी जमीन वापस दिलाना और कट्टरपंथियों पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही करना। हम फिर पूछेंगे।
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