कोई इसमें परेशान है कि वो धनी अमीर कब बनेगा। जो धनी है उसकी चिंता कि उसका शुगर, बीपी, बैक या घुटने का दर्द कैसे और कब ठीक होगा। जिसका खुशहाल परिवार है उसको अलग चिंता और जिसके घर में दुःख उसकी अलग समस्या।
अगर रहने को एक छत हो और खाने को भोजन हो, बाक़ी तो हमारी बनाई हुई दिमागी समस्या है। ऋषि मुनि सही कह गएँ हैं कि अपनी जरूरतों से ज्यादा इकट्ठा करना ही बहुत सारी समस्याओं का मूल कारण है।
भारत ने दुनिया को मन की शांति का यंत्र योग और अध्यात्म के माध्यम से दिया पर हम भारतीय खुद ही मोह माया और लालच में उलझे है।
हमने दुनिया को बताया अपरिग्रह कि ज़रूरत से ज़्यादा कोई चीज इकट्ठा मत करो पर हम पूरा जीवन धन संपत्ति अर्जित करने में ही नष्ट कर देते हैं।
मृत्यु अटल है और मरना सबको है फिर मर मर के क्यों जियें। क्यों ना एक अच्छा जीवन जीकर मरें। शरीर अमर नहीं है पर ऐसा जीवन जियो कि युगों युगों तक नाम अमर रहे।
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