फ़ेल पास, मार्क्स, ग्रेड और डिविसन


मैंने कहीं सुना कि दसवीं के विद्यार्थी बिना परीक्षा के अगली कक्षा में जाएँगे। कितना अच्छा हुआ अब कितनो को अपने घर वालों से पड़ोसी के पढ़ाकू बच्चों के नम्बर की उलाहना भी नहीं सुननी पड़ेगी। ये तो चलो मज़ाक़ था पर इस बार कम से कम कोई बच्चा इस फ़ेल पास, मार्क्स ग्रेड और डिविसन के तनाव में आत्महत्या नहीं करेगा।

जब अच्छे मार्क्स या ग्रेड आते हैं तो अच्छा लगता है पर मार्क्स या ग्रेड से कुछ रुकता नहीं है। जो जूनून से किसी भी काम में लग जाता है, उसे ऊँचे ग्रेड मिले ना मिले वह अपनी प्रतिभा की चमक से दुनिया में उजाला लाता है। दुनिया में इसके अनगिनत उदाहरण हैं।  

मै छोटा था तो एक बार गणित में 20 में से केवल 2 अंक मिले थे मुझे। सातवी आठवीं में गणित में ख़ूब मन लगने लगा। नौंवी कक्षा में मेरे गुरु ने कहा कि तू गणित का मास्टर है। पर दसवीं में गणित के पेपर में फ़ेल होते होते  बचा। उसके बाद भी फिर इंटरमीडीएट में गणित से पढ़ा। सब कहते कि जैसे तैसे गणित में पास हुए अब फिर से गणित पढ़ रहे, मै पढ़ा और गणित को लगन से पढ़ा, गणित में अच्छे मार्क्स भी मिले। इंजीनियरिंग की पढ़ायी की, बड़े बड़े गणित के पहाड़ जैसे समीकरण भी आए, उनको भी पार किया। 

वैसे मै अपनी कोई डींग नहीं हाँक रहा हूँ। इस उदाहरण के सहारे यह कहने की कोशिश का रहा कि हर एक साधारण के अंदर असाधारण क्षमता होती है। जब कुछ सीखने की ललक जागती है तब अंदर की ज्योति भी जागृत हो जाती है।  

अगर आपके घर में कोई हो जो अभी स्कूल में हो उसे मेरा यह पोस्ट पढ़ाना और आप उससे कहना कि फ़ेल पास, मार्क्स ग्रेड और डिविसन के लिए नहीं बल्कि सीखने के लिए पढ़ो।  

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