एक निराशा थी मेरे भारत में, जिधर देखो उधर चोरी बेईमानी आतंक और अन्याय चरम पर था। एक दिन एक सन्यासी राष्ट्र का नेतृत्व सम्भालता है। और वह देश के लोगों से एक आग्रह करता है कि जो सक्षम है, क्या वो रसोई गैस की सब्सिडी छोड़ सकते हैं। जिस देश में कोई कुछ नहीं छोड़ता, उसी देश के दो करोड़ से भी ज़्यादा परिवार रसोई गैस की सब्सिडी छोड़ देते हैं, और उस बचे हुए पैसे का प्रयोग भारत के आठ करोड़ से भी ज़्यादा परिवारों को रसोई गैस का कनेक्शन देने में किया जाता है। जिन परिवारों ने सब्सिडी छोड़ी उन्हें गर्व होता है कि उन्होंने समाज के लिए कुछ किया। भारत के उन सभी परिवारों का अभिनंदन जिन्होंने बड़ा दिल दिखाया और ग़रीब के लिए सोचा और किया।
वही समाज और वही व्यवस्था पर जब समाज को अपने नेतृत्व पर विश्वास होता है तब समाज भी उठ खड़ा होता है। बहुत सारी समस्याएँ हैं हमारे भारत में, पर समस्या का समाधान भी जनमानस की भागीदारी से ही निकलता है।
आज पूरे बारह सौ वर्षों के बाद अगर कुछ अच्छा हो रहा भारत में, तो कुछ लोगों को उससे दिक़्क़त है। जहां तक मुझे समझ में आता है कि इन नकारात्मक सोच वाले लोगों की समस्या है कि आज अपराध भ्रष्टाचार आतंकवाद पर अंकुश क्यों है। क्योंकि पहले तो सब कुछ चलता था। समय बदलता है, अंधेरे के बाद उजाला आता है। और सत्य ही जीतता है असत्य नहीं “सत्यमेव जयते नानृतं“
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