कभी काला बोलते हो, कभी कुरूप

कभी काला बोलते हो, कभी कुरूप। क्या मनुष्य के ऊपरी सतह का रंग रूप ही उसकी पहचान है। क्या उसकी सोच, उसके कर्म, उसकी काबिलियत का कोई मूल्य ही नहीं है। उसी ईश्वर उसे भी बनाया है जिसने तुम्हें बनाया। आपके ऊपर का रंग अलग है ना पर शरीर के अंदर तो सब का एक ही जैसे हैं। आपने कैसे निर्धारित किया कि कौन कुरूप है और कौन सुंदर। 

वैसे भारत में गोरा कौन है? भारत में तो या तो लोग भूरे हैं या साँवले। यूरोप वाले केवल यूरोप की मूल नस्ल को ही गोरा मानते हैं। यहाँ तक की थोड़े से सफेद ईरानी, इराक़ी, सीरिया और तुर्की के लोगों को गोरा नहीं मानते वो लोग। 


आप तो भारतीय संस्कृति के पोषक कहते हो ना अपने आपको, वह संस्कृति जो कहती है कि  कण कण में ईश्वर का वास है। फिर ऐसी कौन सी मानसिक विकृति बैठ गयी है आपके अंदर जो ईश्वर की बनाई हुई रचना को कुरूप बोलकर अपमानित करते  हो। 


और काला अगर ख़राब है तो फिर काजल क्यों लगाते हो? किसी भी काले वस्तु का उपयोग क्यों करते हो।  श्री कृष्ण और महाकाली की पूजा क्यों करते हो? अगर यही सोच है आपकी कि काला ख़राब है तो कृष्ण और काली के द्वार पर कौन सा मुँह लेकर जाते हो। आप उनसे नजर कैसे मिला पाते हो?   


मैं दुनिया भर के लोगों से मिलता हूँ और आपको बता दूँ की रंग रूप के आधार पर भेदभाव करने में सबसे आगे हम भारतीय लोग ख़ुद हैं। इस भेद भाव को कौन लाया यह सब जानते हैं। पर इतना कह सकता हूँ कि यह घटिया सोच भारतीय संस्कृति की हिस्सा नहीं थी। और जो इस भेद भाव में विश्वास करते हैं वह अपने आपको भारतीय नहीं कह सकते।    


6 comments:

  1. बहुत सुंदर लेख भैया जी👌
    इस पोस्ट से समाज मे एक अलग जागरूकता आएगी✌️
    शानदार तस्वीर के साथ शानदार लेख🇮🇳

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  2. Wail said bhai.... One face such situations only that persion can understand ....

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  3. Kya baat h appu .... kuch parahaan dikh rhe ho bhai...jo likhe ho acchha h.. humare samaj me sab jagah bhed bhaav h..kabhi jaati toh kabhi rang roop toh kabhi ameer gareeb ...bahut hi matbhed h hunare sanaj

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    1. dhanyavaad.. par aapko nahi pehchaan nahi paya :)

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