एक बार योगा की फ़्री क्लास आयोजित करायी, बहुत सारे योगा टीचर बुलाए। ऑनलाइन क्लास भी करायी कि लोग घर से योगा कर सके।
वैसे योगा की क्लास में अपने देशी लोग कम ही आते हैं। पर एक देशी अंकल कहीं ऑनलाइन क्लास से योगा कर रहे थे। बाद में मेरे मित्र ने बताया कि वो अंकल, टीचर के कपड़ों पर कुछ टीका टिप्पणी कर रहे थे।
मैंने अपने मित्र से बोला उन अंकल से पूछना क़ि वो योगा सीख रहे थे क़ि टीचर के कपड़े घूर रहे थे। टीचर में गुरु नहीं दिखा उनको। वैसे उस टीचर ने ऐसा कुछ नहीं पहना था जो देखने में ख़राब लगे पर जिसका मन ही अपवित्र है उसको तो दुनिया में सब कुछ ख़राब ही दिखेगा।
सही कहते है लोग कि यह कलियुग है। लोगों को भलाई के लिए अगर नि:स्वार्थ सेवा भी करो तो उसने भी आपत्ति है।
ख़ैर दुनिया में अच्छे और ख़राब दोनो हैं। और जब दुनिया में कुछ अच्छे लोग हैं तब तक लोगों का सत्य और मानवता पर विश्वास बना रहेगा।
नमस्ते!
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