भारत के बाहर ख़ासकर पश्चिमी देशों में भारत के जो सबसे प्रसिद्ध कुछ नाम हैं, उसी में से एक नाम हैं स्वामी विवेकानंद का।
स्वामी विवेकानंद किसी इंग्लिश मिडियम यूनिवर्सिटी में नहीं पढ़े थे। भारत की अपनी शिक्षा पद्दति में से निकले और भारत के सबसे ज्ञानी व्यक्तियों में गिने जाते हैं। आज कल यूनिवर्सिटी डिग्री वाला अपने आधे अधूरे विषय ज्ञान पर ही फूला रहता है जैसे कि जग में वह ही एक श्रेष्ठ है। समाज का तथाकथित पढ़ा-लिखा वर्ग दूसरों का उपहास उड़ाता है कि वो बिना यूनिवर्सिटी डिग्री वाला या वाली यह कैसे बन सकता है। चाय वाला प्रधानमंत्री कैसे बन सकता है, एक योगी मुख्यमंत्री कैसे बन सकता है, पाँचवी पास महिला कैसे किसी प्रदेश की कमान सम्भाल सकती है। एक स्वामी इतना बड़े व्यापार का साम्राज्य कैसे खड़ा कर सकता है। आर्यभट्ट, चरक, भास्कर, चाणक्य, बुद्ध, महावीर, कबीर, तुलसीदास जैसे हज़ारों नाम हैं जो भारत की अपनी शिक्षा पद्दति से निकले हैं।
आइए आज ज्ञानी और पढ़े-लिखे डिग्री वालों पर चर्चा करते हैं। मै अपने ख़ुद के अनुभव और विचार साझा कर रहा हूँ। प्रारम्भ करता हूँ की मेरी दादी की जेनरेशन से। मेरी दादी जिसे हम अम्मा बुलाते थे। वह कभी किसी स्कूल नहीं गयी थी पर ज्ञान का भण्डार थी। उनके पास लगभग सभी विषयों का ज्ञान था। उन्हें पेड़ पौधे, पर्यावरण का महत्व मालूम था। जड़ी बूटी और मसाले से कितनी बीमारियाँ ठीक कर देते थे दादी के जेनरेशन के लोग। इनसे आप किसी रीति रिवाज के बारे उससे पूछो, वह अपनी जानकारी के हिसाब से बताती रहती थी। इनको कर्मकांड, आस्था, रीति रिवाज के साथ धर्म ज्ञान भी था। मै अपनी दादी से बहुत कुछ सीखा।
फिर मेरी माँ का जेनरेशन जिमसे लोग स्कूल कॉलेज डिग्री कॉलेज, यूनिवर्सिटी वाले थे। मेरी माँ भी कॉलेज गयी उसने आर्ट्स में ग्रैजूएशन किया है। इस जेनरेशन के लोग अपनी संस्कृति से परिचित तो हैं पर कोई भी कार्य या अनुष्ठान हम क्यों कर रहे हैं, उसका क्या महत्व है, उसकी उचित कारण और जानकारी का अभाव दिखा मुझे। बहुत सी चीज़ों के उत्तर ही नहीं थे कि आख़िर अहम ये सब क्यों करते हैं। कर्मकांड, आस्था, रीति रिवाज को आँख बंद कर पालन किया। सामाजिक कुरितियों को भी आस्था के नाम पर चलाते रहे।
उसके बाद आती मेरे जेनरेशन के लोग। यह इंग्लिश मिडियम काल है जिसमें लगभग हर कोई पढ़ा लिखा है और स्कूल कॉलेज यूनिवर्सिटी में समय बिता चुके हैं। पर यह मुझे सबसे अज्ञानी काल लगता है। हमें ना अपनी संस्कृति के बारे में कुछ पता है, और ना ही देश दुनिया की जानकारी। घर के आगे पीछे पेड़ पौधे की जगह ए॰सी॰ लगाते हैं, छोटी छोटी दूरी के लिए पैदल और साइकल की जगह मोटर बाइक और कार चलकर अपना स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनो नुक़सान करे रहे हैं। मै किसी पर कोई दोष नहीं मढ़ रहा यह शिक्षा व्यवस्था की विफलता है। पेपर पास करके डिग्री मिल गयी, पढ़े लिखे होने का तमग़ा भी मिल गया पर किसी भी व्यवहारिक या सांस्कृतिक ज्ञान में शून्य। ज्ञान छोड़ो मानवीय संवेदना की भी कमी दिखती है।
कभी विश्व गुरु भारत आज अज्ञानता, प्रदूषण, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, अमीर ग़रीब का भेद जैसी ना अनगिनत समस्यों में फँसा हुआ है। दोष किसका है? समाज का, सरकार का या किसी व्यक्ति का? शायद सबका। सबकी एक सामूहिक जिम्मेदारी होनी चाहिए कि हमारा समाज ज्ञानियों से भरा हो। विद्यालयों से डिग्री वाले कामचोर और रिश्वतखोर रोबोट नहीं बल्कि मानवता की समवेदना रखने वाले, समाज के लिए कुछ करने वाले कर्मयोगी निकलें।
मेरा यह विश्वास है कि परिवर्तन होगा, और परिवर्तन की बयार दिख भी रही है। मै देखता हूँ कि जिस देश कोई कुछ भी मुफ़्त का नहीं छोड़ता, उसी देश के २ करोड़ परिवार एलपीजी गैस की सब्सिडी छोड़ देते हैं जिससे ग़रीब परिवारों को गैस चूल्हा और सीलेंडेर मिल सके। इस तरह की घटनायें उस भारत का दर्शन कराती जिसके अंदर ग़रीब के लिए करुणा है।
और मुझे पूरी उम्मीद है कि भारत पुनः विश्व गुरु बनेगा।
स्वामी विवेकानंद जी के शिक्षा के संबंध में विचार-
भारत की वर्तमान और भविष्य में आने वाली परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये हमें अपनी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण परिवर्तन करने की अति आवश्यकता है, हमें ऐसी वर्तमान शिक्षा की आवश्यकता है, जो समय के अनुकूल हो, हमारी दुर्दशा का मूल कारण, नकारात्मक शिक्षा प्रणाली है |
वर्तमान शिक्षा प्रणाली केवल क्लर्क पैदा करने की मशीनरी मात्र है, यदि केवल यह इसी प्रकार की होती है तो भी मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ
इस दूषित शिक्षा प्रणाली के माध्यम से शिक्षित भारतीय युवा पिता, पूर्वजों, इतिहास एवं अपनी संस्कृति से घृणा करना सीखता है, वह अपने पवित्र वेदों, पवित्र गीता को झूठा समझने लगता है, इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली के द्वारा तैयार हुए युवा अपने अतीत, अपनी संस्कृति पर गौरव करने के बदले इन सब से घृणा करने लगता है और विदेशियों की नकल करने में ही गौरव की अनुभूति करता है, इस शिक्षा प्रणाली के द्वारा व्यक्ति के व्यक्त्तिव निर्माण में कोई भी सहयोग प्राप्त नहीं हो रहा है |
ऐसी शिक्षा का क्या महत्व है, जो हम भारतीय को सदैव परतंत्रता का मार्ग दिखाती है, जो हमारे गौरव, स्वावलंबन एवं आत्म-विश्वास का क्षरण करती है |