Farmers of India

 

Every state of India has a contribution in agricultural production. For example, large contribution of coconut, coffee and spices comes from Southern part of India. A large contribution of cotton, peanuts and sugarcane from Western India, Major contribution of wheat, rice, pulses, sugarcane and jute from East and Central India. Tea from North East and Mustard from the North west. Wheat and rice from Central and Eastern part of India. 


Some states have a large contribution and some have maybe smaller but every part of India contributes. But according to Bollywood and TV channels in New Delhi, all the farmers of India live in Punjab only.


Here is few interesting facts regarding agriculture production in India. Punjab is far behind from Uttar Pradesh in wheat production, while it is behind Bengal in rice production and Punjab is in the bottom list in horticulture production such as fruits, flowers, vegetables, spices, natural medicine, honey etc. In Milk production, Punjab comes after Uttar Pradesh, Rajasthan, Madhya Pradesh, Andhra Pradesh and Gujarat.


While I do not believe in regionalism and my friends are in every corner of the world. I also respect the contribution of Punjab, but we have to show the mirror of truth and reality to those, who are immersed in false sense of pride.


Farmers do not live only in Punjab, about fifty percent of India's population is directly or indirectly dependent on agriculture. I am also from farmer family. I lived a life of farmer from my childhood to my teenager age before I left my village for my further education. 

Story of my twisted ankle this week

 

Story 1 

Aliens came through my workplace building’s wall. They came here to tell us that the pollution we cause on the planet earth, also have impact on their planet.  So basically, Aliens came to fight with us, but I talk to them and offered peace. They agreed not to fight with us with a promise that we human will be conscious and will take care of our planet earth.  


Believe you me, they were very angry at us but due to my extra ordinary mediation  skill (wink wink) and assurance of commitment to care about the nature and environment; they agree to go back to their planet without harming us. However, they left a warning message that if you humans don’t change. They will come back again and next time it will be a war! I assured them that don’t worry, we humans are also good people, and We will take care of our planet. 


So, when they were leaving, one of them was facing difficulty while entering into the hole back. I tried to help him, I slipped, and I twisted my ankle.  


Story 2 

I was playing table tennis; I fell against the wall and I twisted my ankle.


I know you won’t believe that I twisted my ankle while playing Table tennis, right?  You are going to believe the alien story since the alien story sounds more convincing and truthful. 

LOL (I really don’t know what LOL stands for something with laughing right) 


Anyway, one of these two stories is true, and I got injured but luckily no fracture and I am recovering very fast.

ज्ञानी या डिग्री वाले रोबोट


भारत के बाहर ख़ासकर पश्चिमी देशों में भारत के जो सबसे प्रसिद्ध कुछ नाम हैं, उसी में से एक नाम हैं स्वामी विवेकानंद का। 


स्वामी विवेकानंद किसी इंग्लिश मिडियम यूनिवर्सिटी में नहीं पढ़े थे। भारत की अपनी शिक्षा पद्दति में से निकले और भारत के सबसे ज्ञानी व्यक्तियों में गिने जाते हैं। आज कल यूनिवर्सिटी डिग्री वाला अपने आधे अधूरे विषय ज्ञान पर ही फूला रहता है जैसे कि जग में वह ही एक श्रेष्ठ है। समाज का तथाकथित पढ़ा-लिखा वर्ग दूसरों का उपहास उड़ाता है कि वो बिना यूनिवर्सिटी डिग्री वाला या वाली यह कैसे बन सकता है। चाय वाला प्रधानमंत्री कैसे बन सकता है, एक योगी मुख्यमंत्री कैसे बन सकता है, पाँचवी पास महिला कैसे किसी प्रदेश की कमान सम्भाल सकती है। एक स्वामी इतना बड़े व्यापार का साम्राज्य कैसे खड़ा कर सकता है। आर्यभट्ट, चरक, भास्कर, चाणक्य, बुद्ध, महावीर, कबीर, तुलसीदास जैसे हज़ारों नाम हैं  जो भारत की अपनी शिक्षा पद्दति से निकले हैं।       


आइए आज ज्ञानी और पढ़े-लिखे डिग्री वालों पर चर्चा करते हैं। मै अपने ख़ुद के अनुभव और विचार साझा कर रहा हूँ। प्रारम्भ करता हूँ की मेरी दादी की जेनरेशन से। मेरी दादी जिसे हम अम्मा बुलाते थे। वह कभी किसी स्कूल नहीं गयी थी पर ज्ञान का भण्डार थी। उनके पास लगभग सभी विषयों का ज्ञान था। उन्हें पेड़ पौधे, पर्यावरण का महत्व मालूम था।  जड़ी बूटी और मसाले से कितनी बीमारियाँ ठीक कर देते थे दादी के जेनरेशन के लोग। इनसे आप किसी रीति रिवाज के बारे उससे पूछो, वह अपनी जानकारी के हिसाब से बताती रहती थी। इनको कर्मकांड, आस्था, रीति रिवाज के साथ धर्म ज्ञान भी था। मै अपनी दादी से बहुत कुछ सीखा।  


फिर मेरी माँ का जेनरेशन जिमसे लोग स्कूल कॉलेज डिग्री कॉलेज, यूनिवर्सिटी वाले थे। मेरी माँ भी कॉलेज गयी उसने आर्ट्स में ग्रैजूएशन किया है। इस जेनरेशन के लोग अपनी संस्कृति से परिचित तो हैं पर कोई भी कार्य या अनुष्ठान हम क्यों कर रहे हैं, उसका क्या महत्व है,  उसकी उचित कारण और जानकारी का अभाव दिखा मुझे। बहुत सी चीज़ों के उत्तर ही नहीं थे कि आख़िर अहम ये सब क्यों करते हैं। कर्मकांड, आस्था, रीति रिवाज को आँख बंद कर पालन किया। सामाजिक कुरितियों को भी आस्था के नाम पर चलाते रहे।      


उसके बाद आती मेरे जेनरेशन के लोग। यह इंग्लिश मिडियम काल है  जिसमें लगभग हर कोई पढ़ा लिखा है और स्कूल कॉलेज यूनिवर्सिटी में समय बिता चुके हैं। पर यह मुझे सबसे अज्ञानी काल लगता है।  हमें ना अपनी संस्कृति के बारे में कुछ पता है,  और ना ही देश दुनिया की जानकारी। घर के आगे पीछे पेड़ पौधे  की जगह ए॰सी॰ लगाते हैं, छोटी छोटी दूरी के लिए पैदल और साइकल की जगह मोटर बाइक और कार चलकर अपना स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनो नुक़सान करे रहे हैं।  मै किसी पर कोई दोष नहीं मढ़ रहा यह शिक्षा व्यवस्था की विफलता है। पेपर पास करके डिग्री मिल गयी, पढ़े लिखे होने का तमग़ा भी मिल गया पर किसी भी व्यवहारिक या सांस्कृतिक ज्ञान में शून्य। ज्ञान छोड़ो मानवीय संवेदना की भी कमी दिखती है।       


कभी विश्व गुरु भारत आज अज्ञानता, प्रदूषण, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, अमीर ग़रीब का भेद जैसी ना अनगिनत समस्यों में फँसा हुआ है।    दोष किसका है? समाज का, सरकार का या किसी व्यक्ति का? शायद सबका। सबकी एक सामूहिक जिम्मेदारी होनी चाहिए कि हमारा समाज ज्ञानियों से भरा हो। विद्यालयों से डिग्री वाले कामचोर और रिश्वतखोर रोबोट नहीं बल्कि मानवता की समवेदना रखने वाले, समाज के लिए कुछ करने वाले कर्मयोगी निकलें।       


मेरा यह विश्वास है कि परिवर्तन होगा, और परिवर्तन की बयार दिख भी रही है। मै देखता हूँ कि जिस देश कोई कुछ भी मुफ़्त का नहीं छोड़ता, उसी देश के २ करोड़ परिवार एलपीजी गैस की सब्सिडी छोड़ देते हैं जिससे ग़रीब परिवारों को गैस चूल्हा और सीलेंडेर मिल सके। इस तरह की घटनायें उस भारत का दर्शन कराती जिसके अंदर ग़रीब के लिए करुणा है।  


और मुझे पूरी उम्मीद है कि भारत पुनः विश्व गुरु बनेगा।    


स्वामी विवेकानंद जी के शिक्षा के संबंध में विचार-

भारत की वर्तमान और भविष्य में आने वाली परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये हमें अपनी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण परिवर्तन करने की अति आवश्यकता है, हमें ऐसी वर्तमान शिक्षा की आवश्यकता है, जो समय के अनुकूल हो, हमारी दुर्दशा का मूल कारण, नकारात्मक शिक्षा प्रणाली है |

वर्तमान शिक्षा प्रणाली केवल क्लर्क पैदा करने की मशीनरी मात्र है, यदि केवल यह इसी प्रकार की होती है तो भी मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ

इस दूषित शिक्षा प्रणाली के माध्यम से शिक्षित भारतीय युवा पिता, पूर्वजों, इतिहास एवं अपनी संस्कृति से घृणा करना सीखता है, वह अपने पवित्र वेदों, पवित्र गीता को झूठा समझने लगता है, इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली के द्वारा तैयार हुए युवा अपने अतीत, अपनी संस्कृति पर गौरव करने के बदले इन सब से घृणा करने लगता है और विदेशियों की नकल करने में ही गौरव की अनुभूति करता है, इस शिक्षा प्रणाली के द्वारा व्यक्ति के व्यक्त्तिव निर्माण में कोई भी सहयोग प्राप्त नहीं हो रहा है |

ऐसी शिक्षा का क्या महत्व है, जो हम भारतीय को सदैव परतंत्रता का मार्ग दिखाती है, जो हमारे गौरव, स्वावलंबन एवं आत्म-विश्वास का क्षरण करती है |

अरे अंकल! योगा करो, टीचर को मत घूरो।

एक बार योगा की फ़्री क्लास आयोजित करायी, बहुत सारे योगा टीचर बुलाए। ऑनलाइन क्लास भी करायी कि लोग घर से योगा कर सके। 

वैसे योगा की क्लास में अपने देशी लोग कम ही आते हैं। पर एक देशी अंकल कहीं ऑनलाइन क्लास से योगा कर रहे थे बाद में मेरे मित्र ने बताया कि वो अंकल, टीचर के कपड़ों पर कुछ टीका टिप्पणी कर रहे थे। 


मैंने अपने मित्र से बोला उन अंकल से पूछना क़ि वो योगा सीख रहे थे क़ि टीचर के कपड़े घूर रहे थे। टीचर में गुरु नहीं दिखा उनको। वैसे उस टीचर ने ऐसा कुछ नहीं पहना था जो देखने में ख़राब लगे पर जिसका मन ही अपवित्र है उसको तो दुनिया में सब कुछ ख़राब ही दिखेगा। 


सही कहते है लोग कि यह कलियुग है। लोगों को भलाई के लिए अगर नि:स्वार्थ सेवा भी करो तो उसने भी आपत्ति है। 


ख़ैर दुनिया में अच्छे और ख़राब दोनो हैं। और जब दुनिया में कुछ अच्छे लोग हैं तब तक लोगों का सत्य और मानवता पर विश्वास बना रहेगा।


नमस्ते!