नमस्ते, मेरा नाम अजय है। मेरा जन्म भारत के डुमरिया गंज नामक एक छोटे से कस्बे में हुआ था। यह डुमरिया गंज लुम्बिनी (बुद्ध का जन्म स्थान) और अयोध्या (राम का साम्राज्य) के लगभग बीचो बीच भारत और नेपाल की सीमा पर स्थित है। बचपन से ही हमारी माँ की तबीयत ख़राब रहती थी. हम सभी भाई बहनों का एक तरह से हमारे पिता ने पालन पोषण किया। मेरे पिता किसी धार्मिक अनुष्ठान या रीति- रिवाज में विश्वास नहीं करते लेकिन वह ईश्वर और कर्म के अटूट आस्था रखते हैं। वह सिद्धांतों के व्यक्ति हैं। बचपन से उन्होंने हमें कर्म का नियम सिखाया। वह मानना है कि कभी किसी को दुख मत दो और कभी भी दूसरों का बुरा मत करो, तुम्हारा कर्म तुम्हारे पास वापस आएगा।
मेरा जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था. बचपन से ही शिव, राम, कृष्ण, हनुमान, सरस्वती, दुर्गा, लक्ष्मी, काली, बुद्ध, महावीर, कबीर, विवेकानंद, और भी कई ऋषिओं, मुनियों, संतो, गुरुओं और देवताओं की कहानियों को सुनने और पढ़ने का अवसर मिला. सभी से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। उनके गुणों से मन प्रभावित होता था और उनकी तरह बनने की जिज्ञासा होती थी. चाहे राम की वचनवद्धिता, न्याय और कुशल प्रशासक की छवि हो। यह बुद्ध की शांति और अहिंसा का मार्ग और ज्ञानोदय की उनकी यात्रा हो, यह मानवता और परमात्मा पर कबीर की कविताएं
हो। यह महावीर के आध्यात्मिक जागरण या दुर्गा की न्याय के लिए महिषासुर के साथ युद्ध। बहुत कुछ सिखाया उस मिटटी ने. इन सबका प्रभाव है मेरे जीवन पर क्या मैं किसी संप्रदाय या आस्था का पालन करता हूं? मुझे नहीं पता लेकिन मैं अन्य लोगों के संप्रदाय और आस्था का सम्मान करता हूं।
मैं 16 साल उम्र में अपने घर से बाहर निकला था . और तब से मैं शिक्षा और रोज़गार के चलते यात्रा करता रहा हूं। भारत के विभिन्न हिस्सों में रहा। भारत से पहली बार मैं टोरंटो, कनाडा गया, मैं वहाँ लगभग एक वर्ष तक रहा। मैं अप्रवासी बन कर वर्ष
2013 में न्यूजीलैंड आया था और मुझे इस देश से प्रेम हो गया।. न्यूज़ीलैण्ड में योग के केंद्र पर बुद्ध की एक प्रतिमा को देखा, बुद्ध की प्रतिमा को देख कर लगा जैसे मुझे अपने गाँव का मित्र मिल गया. मेरे मुँह से निकल गया कि प्रभु तुम मेरे पडोसी थे और तुमसे यहाँ सात समुन्दर पार हजारों मीलों दूर यहाँ मुलाकात होती है.
न्यूज़ीलैण्ड के बारे में और क्या कहूं। चारो तरफ की सुंदरता देख आपको इस देश से प्रेम हो जायेगा। यहाँ की प्रकृति सुंदरता और यहाँ लोगो में मधुर व्यवहार ने मेरा दिल जीत लिया. इस मिट्टी ने मुझे योग और आध्यात्मिकता में वापस बुलाया।
ऊपर मेरा परिचय था. अब बात करता हूँ योग की. योग हमारे स्कूल के पाठ्यक्रम का हिस्सा था और कई पहलुओं में योग हमारी जीवन शैली का हिस्सा था। अब
बात करता हूँ योग की. योग का मेरा प्रथम अनुभव विद्यालय से हुआ. हम
स्कूल में योगासन करते थे. संस्कृत मंत्रो का उच्चारण करते थे. ध्यान
करते थे. हमने गर्मी और बरसात के दिनों में अत्यधिक गर्म दिनों को छोड़कर लगभग दैनिक रूप से योग आसन किया। मंत्रों का जप और ध्यान हमारी दिनचर्या में शामिल था. सात्विक आयुर्वेदिक आहार जैसे कि दाल, चावल और स्थानीय उत्पादित ताजे मौसमी फल और सब्जियां खाना; कुछ महत्वपूर्ण दिवस के उपलक्ष्य पर उपवास के माध्यम से शरीर के अन्दर की अशुद्धियों को शरीर से निकालना भी जीवन शैली का महत्वपूर्ण हिस्सा था. इस
तरह के योगिक जीवन शैली के कई अंग हमारे दिनचर्या का भाग थे पर मुझे नहीं लगता यह जानकारी मुझे उस उम्र में थी और उस उम्र में योग की महत्वता भी नहीं समझ पाते थे।
समय
बीता स्कूल से निकल कर उच्च शिक्षा के बाहर जाना पड़ा. भविष्य सवारने की इस दौड़ में योगिक जीवन शैली पीछे छूट गयी. इंजीनियरिंग में स्नातक किया उसके बाद रोजगार के लिए भागदौड़ में जीवन आगे बढ़ता रहा और योग से दूरी बढ़ती चली गयी। बचपन से निकल कर अब मैं वास्तविक दुनिया
में अपने कदम रख रहा हूँ. इस वास्तविक दुनिया की अपनी ही समस्याएं हैं. सब अपने सपनों को पाने के लिए दौड़ रहे हैं. वास्तविक दुनिया में स्थिरता नहीं है.
मैं भी अपने सपनों को यथार्थ में बदलने के लिए जुट जाता हूँ. और अपने सपने का पीछा करने के बहुत व्यस्त रहने लगता हूँ. मेरे पास मेरे योग अभ्यास के लिए कुछ समय नहीं था. कुछ वर्षों बाद मैं अपनी कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी करता हूँ. बाद में मैंने सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम करना शुरू कर दिया और जीवन के एक लम्बे अंतर्काल में लगभग 10 वर्षो तक योग मेरे जीवन शैली से पूरी तरह गायब रहा.
पिछले तीन वर्षों से योग अभ्यास में मेरे जीवन में वापस आया। शुरुआत में ही मैंने अनुभव किया कि शरीर तंग हो गया है, ध्यान और एकाग्रता और एक स्वस्थ जीवन शैली का अनुशासन खो दिया हूँ । मन बहुत विचलित हुआ हुआ कि मैंने अपने शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य के साथ क्या कर बैठा. अपने शरीर की इस अवस्था पर मन दुखी हुआ. और जहाँ तक मुझे स्मरण है की योगिक जीवनशैली से अलग होने के बाद, मै असंतुष्ट ही रहा. ऐसा लगता कि जीवन में कुछ अधूरा है और जीवन जैसे एक दौड़ हो, एक लक्ष्य पार किया तो दूसरे लक्ष्य की चिंता होने लगती। शरीर, मन और आत्मा सब एक साथ होने के बाद भी सब कुछ अलग थलग था.
जब मैं अपने सपने को यथार्थ में लाने वाले संघर्ष के पिछले 10 वर्षों को याद करता हूं। जो सपना हम सभी को दिखाया जाता है। अच्छे से पढाई करो, फिर नौकरी खोजो, एक बड़े शहर में एक अपार्टमेंट में फ्लैट खरीदो और पूरे जीवन भर बैंक का लोन भरते रहो। मैं भी इन सभी सभी भौतिकवादी जरूरतों को जुटाने में शारीरिक और भावनात्मक अस्थिरता से गुजर रहा था. जीवन की वर्तमान स्थिति से हमेशा नाखुश, तनावग्रस्त और असंतुष्ट हुआ करता था। यह कहना गलत नहीं होगा कि मैं खुद अपने आप से अलग- थलग हो गया था।
आप ऐसा मत समझो, मैं यहाँ साधु बनने के बात नहीं कर रहा हूँ। मैं एक दिन जरूर अपना एक घर बनाना चाहता हूं जो प्रकृति की सुंदरता से दूर नहीं हो। अपनी घर गृहस्थी भी बसाना चाहता हूँ. मैं टेक्नोलॉजी, कम्प्यूटर, स्मार्टफोन सबका का उपयोग करता हूं। मुझे अच्छे कपड़े भी पसंद हैं। जो मैं कहने की कोशिश कर रहा हूं, कि मेरे पास जो कुछ भी है, उससे संतुष्ट हूं और मैं अपने जीवन के उद्देश्य को समझ रहा हूँ और इसमें योगिक जीवनशैली मेरी मदद कर रही है। पिछले 10 वर्ष बहुत कठिन थे। मैं लगातार दौड़ रहा था और भौतिक सुख सुविधा का पीछा कर रहा था। एक लक्ष्य पहुंचने के बाद, मैं दूसरे के लिए दौड़ना शुरू .. और तीसरा .. फिर चौथे वाले ... यह कभी खत्म नहीं हो रहा था। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मेरी आकांक्षाएं नहीं हैं, लेकिन जीवन के लिए मेरे लक्ष्य अब अलग हैं। मैं अब अपने जीवन में स्थिरता और शांति महसूस करता हूं।
पहले मेरे घर पर बहुत सारी विकट समस्याएं थीं। जो लोग हमारे परिवार को जानते हैं. वे जानते हैं कि हम किन कष्टों से गुजरे हैं। वे आश्चर्य करते भी हैं कि हम उन विकराल दुःख और समस्याओं के दलदल से कैसे निकले। वह समय बहुत कठिन था लेकिन मैं जीवन की उस यथास्थिति से संतुष्ट था। मैं भविष्य को लेकर चिंतित नहीं था। मैं हर पल को खेलते हुए जी रहा था। आजकल हम हर पल को हँसते खेलते हुए जीना भूल जाते हैं। अब मैं कह सकता हूं, यह योग की शक्ति थी जो मुझे उस कठिन परिस्थिति और पीड़ा से लड़ने में मदद कर रहा थी.
अब जब मैं खुद को अपनी योगिक जीवन शैली में वापस पाता हूं, मुझे यह अनुभूति होती है कि मै इस चकाचौंध से भरी हुई भौतिक सुख की मरीचिका और मायावी दुनिया में कहीं खो गया था. आवश्यकता से अधिक का संघर्ष और अंध-दौड़ से इस जीवन का कोई लेना देना नहीं है. एक आत्मज्ञान सा हुआ कि धन और संपत्ति इकठ्ठा करने की भाग दौड़ से अच्छा एक अच्छा जीवन जियो. आप अच्छे कर्म करते रहेंगे तो ये धन संपत्ति सब आप के पास अपने आप आएगी. और वैसे भी बहुत सारा धन इकठ्ठा करके करोगे क्या जब सब यहीं छोड़ कर जाना है. हालाँकि मेरे लिए यह कहना आसान है पर मैं यह भी जानता हूँ कि
मायावी जाल सबको उलझा देता है. पर मैं यह पूरी कोशिश करता हूँ कि मेरी जीवनशैली अच्छी हो और जिसकी जो मदद मुझसे हो पाए वो मैं करता रहूँ.
“साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥”
कबीर कहते हैं कि परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमे मेरा गुजारा चल जाये , मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूँ और आने वाले मेहमानो को भोजन करा सकूँ।
इस विश्व में ऐसा कोई नहीं होगा जो किसी दुःख और समस्या से अछूता हो. हम सभी अपने जीवन में विभिन्न तरह की समस्याओं से गुजरते हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि योग से आपके दुःख कम हो जायेंगे और आपकी समस्याएं समाप्त हो जाएँगी
लेकिन योग से स्थिरता आती है और जब मन स्थिर होगा तब समस्या के समाधान का मार्ग भी दिखेगा। योग से शरीर स्वस्थ रहेगा। और जब शरीर स्वस्थ हो तो मन में किसी भी समस्या से लड़ने का साहस होता है. योग शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखता है और विज्ञान इसकी पुष्टि करता है. योग भारत में जन्मा लेकिन आज भारत से कहीं ज्यादा भारत के बाहर प्रसिद्ध और प्रचिलित है.
योग का मेरा अपना अनुभव है कि योग से शरीर, मस्तिष्क और आत्मा का मिलन होता है. मन में एकाग्रता आती है, शरीर स्वस्थ रहता है और जीवन शैली में अनुशासन आता है. आप मायावी जाल से निकल कर यथार्थ में आते हैं. अपने आपको भूत और भविष्य के बीच वर्तमान में पाते हैं. योग को अपने जीवनशैली में मिश्रित करने का मेरा यह तात्पर्य नहीं है कि आप सन्यासी बन जाएँ। अपने जीवन यापन और अपने उत्तरदायित्व का पालन करते हुए अपने मन और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग एक बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली साधन है.
संगीत लगभग सभी को पसन्द है. आप सोच रहे होंगे कि संगीत का योग से क्या सम्बन्ध है. एक बार न्यूज़ीलैण्ड के एक योग केंद्र में लोगो को संस्कृत मंत्रो को गाते हुए सुना, मैं अपने शब्दों वर्णन नहीं कर सकता कि संस्कृत के शब्दों का गीत सुनना और और साथ मिलकर गाना कितना प्रभावशाली हैं. विश्व के विख्यात विश्वविद्यालयों ने अनेकों प्रयोग और शोध के द्वारा संस्कृत के उच्चारण से होने वाले स्वास्थ्यवर्धक लाभों को प्रमाणित किया है.
आज योग का यह अंग और संगीत का यह रूप पुरे विश्व में तेजी से विस्तृत हो रहा है.
जैसे कि मैंने पहले यह उल्लेख किता था कि योग अभ्यास की अनुपस्थिति में मेरा शरीर काफी तंग और मन अशान्त रहता था. पर अब मै अब जब योगिक जीवन शैली में वापस आ रहा हूँ. शरीर और मन के अभूतपूर्व परिवर्तन को अनुभव करता हूँ. मै आपको भी योगा अभ्यास का परामर्श देता हूँ. अगर आपके आसपास कोई योग का केंद्र है वहां जाकर अभ्यास करके देखिये। मेरा विश्वास है की आप परिवर्तन का अनुभव करेंगे।
मै न्यूज़ीलैण्ड में एक कम्युनिटी में जाकर वहां योग अभ्यास कराता हूँ. सप्ताह के कुछ दिन अपने ऑफिस में भी लंच ब्रेक में से टाइम निकाल कर योग अभ्यास कराता हूँ. ऑफिस के मित्र
काफी अच्छा अनुभव करते हैं। मैंने योगा टीचर का मार्ग मानव सेवा हेतु चुना है और पूरी निष्ठा से इस कार्य में लगा हुआ हूँ.
नमस्ते! ॐ शांति: शांति: शांति:
अजय अग्रहरि योगा अलायन्स के साथ एक पंजीकृत योग शिक्षक (आरवाईटी) है, जो एक पंजीकृत योग स्कूल (आरवाईएस) कवाई पुरापुरा, अल्बानी, ऑकलैंड, न्यूजीलैंड के साथ योग शिक्षक प्रशिक्षण पूरा करने को स्वीकार करता है।
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