अगर हम नही देश के काम आये



“मेरे देश वासियों मैंने घर... परिवार... सब कुछ.. देश के लिए छोड़ा है”- नरेन्द्र मोदी

स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी बीस करोड लोगों के बैंक खाते दो वर्ष के अन्तरकाल में कभी नहीं खुले थे और दो वर्ष के अन्तरकाल में कभी बीस करोड़ लोगों को डेबिट कार्ड  वितरित नहीं हुआ था। 

500 और 1000 का नोट पर प्रतिबन्ध स्वतंत्र भारत का बड़ी मुद्रा पर लिया गया सबसे साहसिक और महत्वपूर्ण कदम है। इसे देश के अंदर छिपा हुआ कला धन ख़त्म होगा। पाकिस्तान द्वारा भेजे गए लगभग 12 लाख करोड़ रुपये के नकली नोट भी ख़त्म हो जायेंगे। सामान्य मानवीय जीवन में थोड़ी कठिनाई जरूर आएगी। मै सहमत हूँ कि बैंक में पंक्ति लगा कर खड़े होना निश्चय ही कष्टकारक है। परन्तु कठिनाई का सोचते तो भगत सिंह २३ वर्ष की आयु में फांसी के फंदे पर नहीं झूलते। कठिनाई से डरते तो चन्द्र शेखर आजाद इस देश की आजादी के लिए अपना जीवन न्योछावर नहीं करते। अशफाक उल्ला खान कठिनाई से लड़ते हुए इस देश के लिए शहीद हुए। वीर अब्दुल हमीद ने भारत माता की अस्मिता बचाने के लिए सीने पर गोलिया खायी हैं। खुले आकाश के नीचे काम करने वाला हमारा अन्नदाता किसान अगर कष्टों का व्यथा प्रकट करने लगा तो भोजन के लिए अन्न नहीं होगा। श्रमिक परिश्रम करते हुए कठिनाइयों की व्यथा नहीं सुनाता है। सीमा पर खड़ा सैनिक कष्ट सहते हुए भारत की रक्षा करता है। भारत माँ की लाखो संताने अपने घर परिवार, मित्र और राष्ट्र से दूर अपने परिश्रम की आय में से कुछ बचाकर भारत भेजते हैं जो राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को शक्ति देती है। क्या ये अपने कष्टों की व्यथा प्रकट करते हैं?

कुछ लोगों की दिनचर्या भारत सरकार के इस निर्णय की आलोचना में व्यतीत हो रही है और होनी भी चाहिए क्योंकि  वर्षो की लूट पर आज एक गहरी चोट लगी है। जिनका पूरा जीवन गरीबों के पैसो  की लूट में बीता है वो सामान्य मानवीय की कठिनाइयों की दुहाई दे रहे। हाँ सामान्य मानवीय के जीवन में कठिनाई आएगी जो कुछ समय उपरांत समाप्त हो जाएगी।

पर चिता ग्रस्त वह है जो ७० वर्षो से गाँधी की फोटो दिखा कर देश को लूट रहे हैं। आंबेडकर, लोहिया, निर्धन, किसान और श्रमिको के नाम पर लूट करने करने वाले राजनितिक दल गण चिंता ग्रस्त हैं। भ्रष्टाचार में लिप्त जनता के नौकर सरकारी बाबु लोग चिंता ग्रस्त हैं की ये क्या हो गया। कर की चोरी करने वाले भ्रष्ट व्यापारी चिंता से ग्रसित हैं।  चिंता ग्रस्त पाकिस्तान है जिसका आतंकवाद का जाल टूट जायेगा। बाजार में नकली रुपये वितरित करने वाले देश-द्रोही चिंता ग्रस्त हैं। अल-काइदा, आइसिस, सिमी और लस्करे-तोइबा और उनकी जयजयकार लगाने वाले चिंता ग्रस्त है। आतंकवादियों की मृत्यु पर मातम मनाने वाले चिंता ग्रस्त हैं। सऊदी अरब की भीख पर पालित-पोषित आतंकवाद के कारखाने चिंता में ग्रस्त हैं। नक्सलवाद और माओवाद फ़ैलाने वाले कम्युनिस्टो का गिरोह चिंता में ग्रसित है  

प्रजातंत्र में विचारधाराओं में विरोधाभास हो सकता है और होना भी चाहिए, आलोचना प्रजातंत्र का एक स्तम्भ है। राष्ट्र सर्वोपरि है और मेरा मानना है कि राष्ट्रहित में सभी विचारधाराओ के मानने वालों को  एक साथ खड़ा होना चाहिये।

अगर हम नहीं देश के काम आये तो धरा क्या कहेगी गगन क्या कहेगा