क्या उत्तर प्रदेश को अपराधियों और घोटालेबाजो का साथ पसंद है?
















उत्तर प्रदेश सरकार के एक प्रशासनिक अधिकारी("पढ़े लिखे चोर") के पुत्र के  विवाह में एक आभूषण माला गायब हो जाती है. इस आभूषण का मूल्य तीस लाख रुपये था.  क्योंकि  ये लोग "बड़े वाले चोर" हैं इसलिए इसने कोई प्रश्न भी नहीं करता कि  आप जनता के नौकर हैं. ऐसा कौन सा वेतन  मिलता है कि आप इतनी महँगी आभूषण माला आप इतनी आसानी से आप खरीद भी लेते हैं और और गायब भी हो जाती है. क्योकि आभूषण माला गायब हो गयी तो अब घर में काम कर रहे गरीब मजदुरो से पूछताछ किया गया.  और इनके समाज में यह धारणा भी है की अगर घर में चोरी हुई है तो घर में काम करने वाले गरीब ने ही किया होगा। इनमे से दो गरीब मजदूरो को उत्तर प्रदेश की पुलिस("लाइसेंस धारी गुंडे") दो महीने तक पुलिस लॉकअप में बंद करके उन पर हिंसा और अत्याचार करती रही.  उसमे से एक युवक इस हिंसा और अत्याचार से तंग आकर आत्महत्या करने का प्रयास किया। बात समाचार पत्रो तक पहुच गयी फिर उन्हें पुलिस के चंगुल से निकाला  गया.

आपराधिक सरकार पर फर्स्टपोस्ट न्यूज़ की रिपोर्ट

दूसरी घटना सुल्तानपुर की है जहाँ  उत्तर प्रदेश सरकार चला रही राजनितिक दल के एक नेता("खादी पहने अपराधी") एक २८ वर्षीय बालिका के साथ दुष्कर्म करते हैं. पुलिस बालिका की शिकायत भी नहीं लिखती. उच्च न्यायालय की फटकार पर पुलिस ने शिकायत लिखा. पर उस पीड़ित  बालिका गवाही से एक दिन पहले हत्या कर दिया गया. इन लोगो ने समाजवाद की परिभाषा बनायीं जिसमे पहले बलात्कार फिर हत्या।

इनकी सरकार का एक मंत्री अपने कुछ चमचो के साथ मिलकर एक महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म करता है. और उस महिला के १८ वर्षीया बेटी  के साथ दुष्कर्म करने का प्रयास करता है. सरकार की पुलिस इस अपराधी मंत्री पर कोई कार्यवाही नहीं करती। उच्चतम न्यायलय के हस्ताछेप करने पर आज इस अपराधी कार्यवाही प्रारम्भ हुई है। 

 ये निर्लज़्ज़ कहते हैं कि "काम बोलता है". आकाश से लेकर पाताल तक घोटाला करने वालों के साथ खड़े होकर निर्लज्जता से कहते हैं की "उत्तर प्रदेश को साथ पसंद है." ये उत्तर प्रदेश का परिहास है. जहाँ एक अपराधी और एक घोटालेबाज साथ खड़े होकर कहते हैं कि "उत्तर प्रदेश को अपराधियों और घोटालेबाजो का साथ पसंद है"

एक और बहन जी हैं जो अरबो रुपये  लूटने बाद भी अपने आप को दलित कहती हैं. उन्होंने पुरे सरकारी तंत्र को लूट तंत्र में बदल दिया। भृष्टाचार के साक्ष्य को छिपाने के लिए अफसरों की हत्या करवाई। उनके एक विधायक जी एक १७ वर्षीय नाबालिग दलित बच्ची के साथ दुष्कर्म करते हैं. जब बच्ची पुलिस गयी तो विधायक  जी नहीं बल्कि उस बच्ची को जेल में दाल दिया गया. समाचार पत्रों  और टेली विज़न समाचार तक बात पहुची तब  पीड़ित बच्ची की रिहा हुई.  

इकीसवी सदी में भी इन अपराधियों ने जनतंत्र को बंधक बना रखा है. क्योंकि चुनाव आते ही हम सब जाति और संप्रदाय में अलग थलग बट जाते हैं.  कोई यादव बन जाता है तो कोई ठाकुर बन जाता है. कोई ब्राम्हण  बन जाता है तो कोई जाटव बन जाता है. क्या हम राशन और सब्जी वाले से उसका जाति और पंथ पूछकर उसके यहाँ जाते हैं.   क्या डॉक्टर की उसकी जाति और पंथ पूछ कर अपना उपचार कराते हैं. आम जीवन में हम सब एक साथ होते हैं. हम जिस बर्तन में  भोजन करते हैं. वो बर्तन बनाने वाला कभी नहीं सोचता की किस जाति और पंथ के लोग उसके बनाये हुए बर्तन में भोजन करेंगे। किसान के मन में भी ये दुविधा नहीं होती कि किस जाति और सम्प्रदाय के लोग उसका अनाज खाएंगे।  

हमें  इतनी साधारण सी बात नहीं समझ पाते कि ये लुटेरे यही चाहते हैं कि लोग आपस में बट जाये फिर इनसे कोई ये प्रश्न करे. आपसी मतभेद ने  १५०० वर्षो तक भारत को  आतंकी और लुटेरो के आधीन रहा. चंद्र गुप्त मौर्या और अशोक के शासनकाल  मे जब भारत एक था उस समय किसी आतंकी गोरी और ग़ज़नवी में भारत की तरफ देखने का साहस नहीं था. 

उत्तर प्रदेश जो कभी राम, कृष्णा, बुद्ध और कबीर की धरती हुआ करती थी आज अपराधियों और लुटेरों के अत्याचार सह रही है.    

जब तक लोग एक नहीं होंगे जाति और सम्प्रदाय से ऊपर नहीं उठेंगे। कुछ बदलने वाला नहीं है. ज्यादा नहीं केवल दो वर्ष पहले लोग जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठे और स्वतन्त्र भारत का एक नया इतिहास बनाया। अगर लोग जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठे  तो नया इतिहास बनता रहेगा। और बुराई पर सच्चाई की जीत अवश्य होगी।

सत्यमेव जयते।    




3 comments:

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