किसी "तिवारी" ने किसी "मोहम्मद" के ऊपर अपनी कुछ टिप्पड़ी रख दी. तो लाखों लोग खड़े हो गए तिवारी को गाली देने और उसको फांसी पर चढाने.
कोई "खान" किसी मंदिर के सेट पे जूता पहने हुए दिख गया तो हज़ारों लोग खड़े हो गए उसका सामाजिक बहिष्कार करने के लिए.
क्या ये खुले आम आतंकवाद और धार्मिक कट्टरता नहीं है.
क्या ईश्वर इतना कठोर होगा जो अपने ऊपर की गयी टिप्पड़ी सहन नहीं कर सकता. क्या ईश्वर इतना छोटा हो गया है की अगर कोई उसके मंदिर में जूता पहन के चला जाये तो उसको सजा देगा.
एक टिप्पड़ी से जो लोगों की जान लेना शुरू कर दे तो वो ईश्वर कैसे हो सकता। जो मंदिर में जूता पहनने पर लोगों को सजा देने लगे वो किस बात ईश्वर है. जो अपनी आलोचना नहीं सहन नहीं कर सकता वो ईश्वर तो नहीं हो सकता और अपनी आलोचना के बदले में मृत्यु जैसे कठोर दंड देने वाला ईश्वर तो नहीं बल्कि कोई शैतान हो सकता है.
पहले के लोग हमसे कहीं ज्यादा समझदार थे, वो प्रकृति की उपासना करते थे. वो सूर्य को अपना भगवान मानते थे क्यों सूर्य हमें उजाला देता है. वो नदियों की पूजा करते थे क्योंकि नदियां उन्हें पीने के लिए पानी देती थी. वो वायु की पूजा करते थे, जो वायु हमें ऑक्सीज़न देता है. वो पेड़ पौधे, पर्वत और सुमद्र सब की पूजा करते थे, जो हमारे जीवन की जरुरत थे. आज भी बहुत लोग प्रकृति की पूजा करते है.
ये पेड़ पौधे, नदियां, पहाड़ और मानव जीवन जो सजीव हमारे सामने है. जब तक प्रकृति है तब तक हम है. जिस दिन प्रकृति नष्ट हुई उस दिन हम भी नहीं रहेंगे. आज जो सामने है, हम उस प्रकृति को बचाएं या जिस ईश्वर को देखा भी नहीं उसके के लिए खून बहायेंगे?
भारत का तो इतिहास रहा है प्रकृति को अपने ईश्वर के रूप में स्वीकार करने का. हमारे यहाँ कण कण में ईश्वर का वास माना गया है. हमने दूध देने वाली गाय को माता माना है. हमारे यहाँ छाया और फल देने वाले वृक्ष, नदियां, पर्वत और पत्थर सब को पवित्र माना गया है. केवल पवित्र ही नहीं बल्कि उनको ईश्वर का रूप माना गया है.
कुछ लोगो ने अपनी धर्म की दूकान चलाने के किये प्रकृति को ही नकार दिया, लोगो को गुमराह किया कि प्रकृति की नहीं बल्कि एक काल्पनिक ईश्वर की उपासना करो जिसने प्रकृति को बनाया। बिना प्रतक्ष्य बिना प्रमाण के एक काल्पनिक ईश्वर की रचना हो गयी. एक काल्पनिक स्वर्ग की भी रचना हो गयी. अब लोग एक काल्पनिक स्वर्ग के सपनो में इतने डूब गए की हमने प्रकृति को नष्ट करना शुरू कर दिया. इन ईश्वर के ठेकेदारो की बात मान भी लें की प्रकृति को ईश्वर ने बनाया, तो क्या ईश्वर ने ये कहा कि प्रकृति को नष्ट करना शुरू कर दो और जो उनके ईश्वर को ना माने, तो उसका जीवन समाप्त कर दो. ईश्वर इतना अमानवीय नहीं हो सकता.
चाहे आप ये मानते हैं की प्रकृति ही ईश्वर है या आप ये मानते प्रकृति के ऊपर भी एक ईश्वर है. पर दोनों मान्यताओ में एक चीज समान है कि प्रकृति ईश्वर से जुडी हुई है. और ईश्वर से जुड़ा हुआ कुछ भी नष्ट करना वो ईश्वर की आस्था को नष्ट करने जैसा है.
जीवन प्रकृति का एक अनमोल उपहार है. अगर हम प्रकृति द्वारा दिए गए हर एक जीवन का सम्मान करें, प्रदुषण न फैलाएं और गन्दगी न करें तो प्रकृति या ईश्वर को हमारा इससे बड़ा कोई आभार नहीं हो सकता.
Quite a good article, which reflects the authenticity of Indian culture with logic behind our customs and traditions. Sad reality of some selfish people misusing our heritage.
ReplyDeleteJyothi
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Thanks you Jyothi. I have tried to create same article in English as well.
Deletehttp://blog.ajayagrahari.com/2016/01/god.html
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