पिछले कुछ वर्षों से गाँव की ईद नहीं देखा, गाँव की ईद बड़ी मीठी होती थी। हम दोस्तों के घरों पे जाते सेवइयां खाने। किसी से तुलना नहीं कर रहा पर मुझे हमारे एक गुरु श्री समीउल्लाह मास्टर साब के घर की सेवइयां बहुत पसंद थी। वैसे भी मुझे सेवइयां बहुत अच्छी लगती थी। मेरा ईद का इंतज़ार सेवई के लिए ही होता था :)
ईद पर पड़ोस के घरों से सेवई आती थीं। एक बाँस के सुपेला में कच्ची सेवइयां, चीनी, किशमिश, चिरोनजी इत्यादि सामग्री होती थी। कच्ची सेवइयां भेजने का कारण था कि उन महिलाओं को मालूम था की इन घरों में कुछ लोग माँस मछली नहीं खाते हैं या कुछ लोग माँस मछली वाले बर्तन में नहीं खाते हैं। यह कोई भेद भाव नहीं बल्कि एक आपसी समन्वय और एक दूसरे के लिए प्रेम और सम्मान था। जबकि इधर से दीवाली, होली और खिचड़ी(मकर सक्रांति) पर घर में पके हुए पकवान भेजे जाते थे। उनको भी यह विश्वास था कि सबकुछ शुद्ध और स्वच्छ है और इधर की महिलायें ने उनका विश्वास कभी टूटने नहीं दिया।
मेरे विचार में इतने सुंदर आपसी सौहार्द का कारण महिलाओं की आपसी सामंजस्य, मित्रता और एक दूसरे की आस्था के लिए सम्मान था और यही होना भी चाहिए। हमारा भारतीय दर्शन भी यही कहता है "सर्वधर्म समभाव"। पूजा की पद्धति के बदलने से किसी मूल नहीं बदल जाता, और हर भारतवंसी का मूल भारतीय है।
आशा करता हूँ कि "सर्वधर्म समभाव" की चेतना सभी के अंदर जागृत हो और लोगों के आपसी सम्बंध ईद की सेवई की तरह मीठे रहें।
ईद की शुभकामना।
No comments:
Post a Comment